2027 तक 70% AI अपनाने का लक्ष्य: चीन की नई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रणनीति
चीन ने हाल ही में अपनी नई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) रणनीति की घोषणा की है, जिसके तहत वह 2027 तक 70 प्रतिशत जनसंख्या में AI आधारित तकनीक की पहुँच सुनिश्चित करना चाहता है। यह लक्ष्य चीन के “इंटेलिजेंट इकॉनमी” और “स्मार्ट सोसाइटी” के विज़न का हिस्सा है। यह खबर पूरी दुनिया के लिए अहम है, क्योंकि इसका सीधा असर वैश्विक टेक्नोलॉजी, व्यापार और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर पड़ेगा।
चीन की नई AI रणनीति क्या है?
चीन के आधिकारिक दस्तावेज़ में तीन बड़े माइलस्टोन तय किए गए हैं। पहला, 2027 तक नई पीढ़ी के intelligent terminals और AI agents का उपयोग 70% से अधिक लोगों तक पहुँच जाएगा। दूसरा, 2030 तक यह पहुँच 90% से ऊपर होगी और AI अर्थव्यवस्था का प्रमुख इंजन बन जाएगा। तीसरा, 2035 तक चीन एक पूरी तरह से intelligent economy और intelligent society के चरण में प्रवेश कर जाएगा।
AI को लेकर चीन का दृष्टिकोण
चीन का मानना है कि AI सिर्फ एक टेक्नोलॉजी नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है। हेल्थकेयर, शिक्षा, रक्षा, परिवहन और कृषि जैसे क्षेत्रों में AI के प्रयोग को तेजी से बढ़ाया जा रहा है। चीन इस रणनीति के जरिए न केवल अपने देश के लोगों को आधुनिक तकनीक से जोड़ना चाहता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी AI नेतृत्व कायम करना चाहता है।
भारत-चीन बैठक और AI सहयोग
1 सितंबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी प्रतिनिधियों के बीच हुई बैठक में टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में सहयोग पर चर्चा हुई। इस मुलाकात को दोनों देशों के बीच बदलते रिश्तों के संदर्भ में अहम माना जा रहा है। बैठक में AI research, digital economy और cyber security जैसे विषय प्रमुख रहे। भारत और चीन अगर इस क्षेत्र में सहयोग बढ़ाते हैं, तो एशिया वैश्विक AI हब के रूप में उभर सकता है।
भारत के लिए फायदे और चुनौतियाँ
चीन की यह रणनीति भारत के लिए भी कई मायनों में महत्वपूर्ण है। भारत पहले से ही डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, UPI और Aadhaar जैसे इनोवेशन के जरिए तकनीकी दुनिया में अपनी पहचान बना चुका है। यदि भारत-चीन सहयोग मजबूत होता है तो शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में AI आधारित समाधान से बड़े पैमाने पर लाभ हो सकता है।
लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियाँ भी हैं। चीन की तकनीकी बढ़त भारत के लिए प्रतिस्पर्धा भी खड़ी करती है। डेटा प्राइवेसी, साइबर सुरक्षा और आर्थिक निर्भरता जैसे मुद्दे भारत को सोचने पर मजबूर करते हैं। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि सहयोग के साथ-साथ उसकी डिजिटल संप्रभुता (digital sovereignty) भी सुरक्षित रहे।
वैश्विक प्रभाव
चीन का यह कदम अमेरिका और यूरोप जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित करेगा। वैश्विक टेक रेस में चीन का AI पर जोर देना एक भू-राजनीतिक परिवर्तन का संकेत है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले दशक में अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सबसे बड़ा आधार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस होगा। ऐसे में भारत समेत अन्य देशों के लिए जरूरी है कि वे अपनी रणनीति को मजबूत करें।
कुल मिलाकर, चीन का यह AI रोडमैप न केवल उसकी घरेलू नीतियों को बल्कि पूरे विश्व की तकनीकी और आर्थिक दिशा को प्रभावित करेगा। भारत के लिए यह समय सहयोग और सतर्कता दोनों का है, ताकि वह इस बदलाव का अधिकतम लाभ उठा सके और संभावित खतरों से भी बच सके।
निष्कर्ष
चीन ने 2027, 2030 और 2035 के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर जो लक्ष्य तय किए हैं, वे दुनिया के सामने उसकी गंभीरता और महत्वाकांक्षा को दर्शाते हैं। भारत के लिए यह एक अवसर भी है और चुनौती भी। प्रधानमंत्री मोदी और चीन के बीच हाल ही में हुई मुलाकात इस बात का संकेत देती है कि दोनों देश टेक्नोलॉजी और AI के क्षेत्र में सहयोग कर सकते हैं। लेकिन इस सहयोग के साथ भारत को अपनी सुरक्षा, डेटा प्राइवेसी और आर्थिक हितों को भी संतुलित करना होगा। आने वाले वर्षों में AI न केवल तकनीकी बदलाव लाएगा बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को भी नए सिरे से परिभाषित करेगा।


