Google gemini report pr ek najar

क्या आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस धरती के लिए सुरक्षित है? Google ने जारी की Gemini की पर्यावरण रिपोर्ट

क्या सचमुच AI सिर्फ़ “पाँच बूंद पानी” पीता है?

23 अगस्त 2025 — आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आज हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है। पढ़ाई हो, नौकरी हो या मनोरंजन – हर जगह लोग AI का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जब आप Google के Gemini AI से कोई सवाल पूछते हैं, तो धरती और पर्यावरण पर उसका कितना असर पड़ता है? आमतौर पर हम मानते हैं कि यह तो बस इंटरनेट का एक हिस्सा है, इसमें कोई बड़ी खपत नहीं होती। मगर हकीकत थोड़ी अलग है।

Google ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें बताया गया है कि Gemini AI से एक साधारण सवाल पूछने पर जितनी बिजली खर्च होती है, उतनी ही बिजली एक टीवी को लगभग 9 सेकंड चलाने में लगती है। पानी की बात करें तो सिर्फ़ पाँच बूंद। सुनने में यह आंकड़े बेहद छोटे लगते हैं, और शायद इसीलिए Google ने इन्हें सार्वजनिक किया ताकि लोग समझें कि AI का असर उतना भारी नहीं है जितना पहले अनुमान लगाया जाता था।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। Google ने दावा किया कि मई 2024 से मई 2025 के बीच AI सिस्टम की ऊर्जा खपत में 33 गुना कमी और कार्बन फुटप्रिंट में 44 गुना कमी आई है। यह सब नए शोध, बेहतर सॉफ्टवेयर-हार्डवेयर और स्वच्छ ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) के इस्तेमाल से संभव हुआ। यानी, कंपनी कह रही है कि अब उनका AI पहले से कहीं ज़्यादा पर्यावरण-हितैषी हो चुका है।

रिपोर्ट पर सवाल और आम लोगों की नज़र

अब ज़रा आम लोगों की नजर से सोचिए। हम जब Google से कोई सवाल पूछते हैं, तो हमें बस स्क्रीन पर जवाब दिखता है। हमें लगता है कि सब कुछ डिजिटल है, इसमें धरती का कोई नुकसान नहीं। लेकिन हकीकत यह है कि हर सवाल के पीछे बड़े-बड़े कंप्यूटर काम करते हैं, जिनके लिए बिजली और पानी दोनों की ज़रूरत होती है। यही कंप्यूटर ठंडे रखने के लिए पानी की खपत और बिजली की मांग काफी बढ़ जाती है।

रिपोर्ट में बताए गए आंकड़े सुनने में अच्छे लगते हैं, लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि यह पूरी तस्वीर नहीं है। मसलन, AI मॉडल को ट्रेन करने में जो ऊर्जा खर्च होती है, वह इस रिपोर्ट में शामिल नहीं है। सिर्फ़ सवाल-जवाब यानी “इंफरेंस” को आधार बनाया गया है। जबकि असली बोझ तो ट्रेनिंग और भारी काम जैसे वीडियो या फोटो बनाने में पड़ता है।

इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी साफ नहीं है कि Google की डाटा सेंटर्स में पानी की खपत अलग-अलग देशों में कितनी है। कई जगह जहां पानी की कमी पहले से ही बड़ी समस्या है, वहां AI के लिए अतिरिक्त पानी खर्च होना आम लोगों के लिए चिंता का विषय बन सकता है।

फिर भी, Google का ये कदम अहम है कि उसने कम से कम आंकड़े शेयर किए। इससे लोगों को पता चलता है कि डिजिटल दुनिया भी धरती से जुड़ी संसाधनों पर निर्भर है। यह हमें याद दिलाता है कि जब हम AI से सवाल पूछते हैं, तो उसका असर धरती पर जरूर पड़ता है।

आम लोगों के लिए इसका मतलब यह है कि हमें AI का इस्तेमाल सोच-समझकर करना चाहिए। यह सोचना कि डिजिटल चीज़ें “फ्री” हैं, पूरी तरह गलत है। बिजली और पानी दोनों धरती से ही आते हैं और सीमित हैं। इसलिए तकनीक का समझदारी से इस्तेमाल करना भी हमारी जिम्मेदारी है।

निष्कर्ष: Google का दावा कि एक सवाल पर सिर्फ पाँच बूंद पानी और 9 सेकंड की बिजली खर्च होती है, सुनने में शानदार लगता है। लेकिन सच्चाई कहीं ज़्यादा गहरी है। हां, यह सही है कि कंपनी ने अपने सिस्टम को बेहतर बनाया है और ऊर्जा खपत घटाई है। मगर जब तक हमें पूरी तस्वीर नहीं दिखती, तब तक हमें यह मानकर चलना चाहिए कि डिजिटल दुनिया भी धरती के संसाधनों पर बोझ डालती है।

आखिर सवाल ये है: क्या हम AI को ऐसे इस्तेमाल करेंगे कि तकनीक भी बढ़े और धरती भी सुरक्षित रहे?

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